कहानी संग्रह >> खेल खेल में खेल खेल मेंनिर्मल वर्मा
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निर्मल वर्मा तत्कालीन चेकोस्लोवाकिया की राजधानी ‘प्राग’ अर्थात् देहरी। एक तरह से प्राग नगर यूरोप का प्रयाग रहा है – पूर्व और पश्चिम की सांस्कृतिक धाराओं का पवित्र संगम-स्थल। बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में वह यहूदी विद्वानों, जर्मन लेखकों और रूसी क्रान्तिकारियों का शरण-स्थल रह चुका है। उन दिनों उसमें शायद पेरिस या वियेना या बर्लिन की चकाचौंध नहीं थी, लेकिन एक अनूठी गरिमा और संवेदनशीलता अवश्य थी, जिसने वहाँ बसने वाले जर्मन और यहूदी लेखकों की मनीषा को एक बिरले रंग और लय में ढाला था।
आज भी बीसवीं शती के जर्मन और यहूदी साहित्य को प्राग से अलग करके देख पाना असम्भव लगता है। इसी प्राग नगर में साठ के दशक में हिंदी के प्रसिद्ध कथाकार श्री निर्मल वर्मा ने अपने युवा वर्ष गुजारे थे। उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ़ ओरिएंटल स्टडीज़ के निमन्त्रण पर वहाँ रह कर न केवल चेक भाषा सीखी, बल्कि तत्कालीन चेक साहित्य से हिन्दी जगत को सीधे परिचित करवाया।
हिन्दी पाठकों के लिए यह दिलचस्प तथ्य होगा कि चेक साहित्य के गणमान्य मूर्धन्य लेखकों – कारेल चापेक, बोहुमिल हराबाल – के अलावा तब के युवा लेखकों, मिलान कुन्देरा और जोसेफ़ श्कवोरस्की की रचनाएँ हिन्दी में उस समय आयीं जब यूरोप में वे अभी अल्पज्ञात थे। यही इस संग्रह की ऐतिहासिक भूमिका है। प्रस्तुत कहानियाँ इससे पहले ‘इतने बड़े धब्बे’ नाम से 1966 में संकलित हो चुकी हैं।
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